सुरक्षा परिषद में रशिया विरोधी मतदान करना भारत ने टाला

संयुक्त राष्ट्रसंघ – रशिया ने यूक्रेन के चार प्रांत रशियन संघराज्य का हिस्सा घोषित करने के बाद अमरीका ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में रशिया विरोधी प्रस्ताव रखा। सुरक्षा परिषद के अस्थायि सदस्य भारत ने इस पर मतदान करते सयम अनुपस्थित रहने का निर्णय किया। चीन, ब्राज़ील, गैबॉन ने भी इस पर मतदान नहीं किया। रशिया ने नकाराधिकार का इस्तेमाल करके इस प्रस्ताव को ठुकराया। इस वजह से भारत और अन्य देशों की इस मुद्दे की वोटींग के समय अनुपस्थिती का मुद्दा काफी चर्चा में नहीं रहा। लेकिन, इस मुद्दे पर अपनी भूमिका स्पष्ट करते समय संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने राजनीतिक बातचीत ही यूक्रेन समस्या का हल निकालने का एकमात्र मार्ग होने की बात फिर से कही।

शुक्रवार को रशियन राष्ट्राध्यक्ष पुतिन ने यूक्रेन के चार प्रांत अब रशियन संघराज्य का हिस्सा होने का ऐलान किया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सनसनी निर्माण हुई। अमरीका और पश्चिमी देशों के प्रभाव के अधिकांश देशों ने रशिया के इस निर्णय की कड़ी आलोचना की। साथ ही रशिया का यह निर्णय हम स्वीकार नहीं करेंगे, यह ऐलान भी इन देशों ने किया। अमरीका और यूरोपिय देशों के प्रभाव वाले अंतरराष्ट्रीय समूदाय के ज़रिये रशिया की आलोचना हो रही है और तभी संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में अमरीका और अल्बानिया ने रशिया के खिलाफ प्रस्तव पेश किया था। भारत ने इस पर मतदान किए बिना अनुपस्थित रहने का निर्णय किया। भारत के इस निर्णय का समर्थन करते हुए राजदूत रुचिरा कंबोज ने यूक्रेन युद्ध में भारत की तटस्थ भूमिका फिर से स्पष्ट की।

यूक्रेन में फिहाल जारी गतिविधियों की वजह से भारत बेचैन है और मानवी जीवन की कीमत चुकाकर इस युद्ध का किसी भी अन्य तरीके से हल नहीं निकलेगा, ऐसा भारत का कहना है। इसी कारण हिंसा और खूनखराबा तुरंत रोककर राजनीतिक बातचीत से इस समस्या का हल निकाला जाना चाहिए। शांति स्थापित हुई तो राजनीतिक बातचीत से मार्ग चौड़े होते हैं’, यह राजदूत कंबोज ने कहा। साथ ही यूक्रेन युद्ध शुरू होने के साथ ही भारत ने लगातार यही भूमिका अपनाई है, इस पर भी रुचिरा कंबोज ने ध्यान आकर्षित किया।

इसी बीच यूक्रेन के चार प्रांतों के मुद्दे पर ऐलान करते हुए रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन ने अमरीका के साथ पश्चिमी देशों को उनके घने काले इतिहास की याद दिलाई थी। परमाणु बम से हमला करनेवाली अमरीका एकमात्र देश है और अमरीका ने ‘नापाम’ बम का भी इस्तेमाल किया था, इस पर पुतिन ने ध्यान आकर्षित किया। पश्चिमी देशों ने अफ्रीकन्स को पकड़कर उन्हें गुलाम बनाकर बेचने का कारोबार किया था। इसके अलावा चीनी जनता को अफीम की लत लगाकर पश्चिमी देशों ने इस देश को खतरे में धकेला था। भारत जैसे देश की भीषण लूट भी पश्चिमी देशों ने की थी। इस इतिहास वाले देश अब वैश्विक व्यवस्था की भाषा कर रहे हैं। यह कहां कि और किसने मंजूर की हुई व्यवस्था है, यह सवाल पुतिन ने किया था।

उनके इस भाषण की गूंज पश्चिमी जगत में सुनाई दे रही है और पुतिन ने अमरीका और पश्चिमी देशों के खिलाफ भारत और चीन समेत अफ्रीकी और लैटिन अमरिकी देशों को उकसा रहे हैं, यह चिंता पश्चिमी विश्लेषक व्यक्त कर रहे हैं। अब अमरीका की नीति के खिलाफ किसी समय अमरीका के करीबी मित्र रहे देशों से भी प्रतिक्रियाएँ सामने आने लगी हैं। यूरोप एवं खाड़ी देशों के सहयोगी देश भी अब बायडेन प्रशासन के खिलाफ भूमिका लेने लगे हैं। ऐसी स्थिति में रशियन राष्ट्राध्यक्ष ने अमरीका के अलावा पश्चिमी देशों को पूरे विश्व पर वर्चस्व पाना है, यह आरोप लगाकर सनसनी निर्माण की। तथा इस वर्चस्व के खिलाफ खड़ी हुई रशिया को पूरे विश्व से प्रतिसाद मिलने का दावा करके राष्ट्राध्यक्ष पुतिन ने पश्चिमी देशों की नींद उड़ाई हुई दिख रही है।

यूरोपियन काऊन्सिल ने पुतिन के इन बयानों का गंभीर संज्ञान लिया है। दूसरे देश की भूमि हथियानेवाले पुतिन को दूसरों को उपदेश करने का कोई अधिकार नहीं है, ऐसा यूरोपियन काऊन्सिल ने कहा है।

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