इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत अपना सामर्थ्य दिखाए – पूर्व नौसेना अधिकारी की मांग

चंदिगड़ – इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को लेकर भारत का केवल राजनीतिक स्तर पर सोचना पर्याप्त नहीं है, बल्कि राजनीतिक कोशिशों को समुद्री क्षेत्र के सामर्थ्य का साथ बहुत जरुरी है। विशेषरूप से विमान वाहक युद्धपोतों का भारतीय नौसेना में अधिक संख्या में समावेश होना समय की मांग है, ऐसा इशारा वॉईस एडमिरल (निवृत्त) गिरीश लुथ्रा ने दिया है। साथ ही चीन की क्षेत्रिय और वैश्विक स्तर की महत्वाकांक्षा बडे पैमाने पर बढ़ी है, और ऐसे में भारत के लिए अपनी नौसेना का सामर्थ्य काफी मात्रा में बढाना अनिवार्य बन गया है, इसका अहसास लुथ्रा ने दिलाया।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्रचंडीगढ में आयोजित ‘मिलिटरी लिट्रेचर फेस्टिवल’ में ‘रेलिवन्स ऑफ एअरक्राफ्ट कैरिअर्स इन पावर प्रोजेक्शन’ विषय पर वॉईस एडमिरल (निवृत्त) गिरीश लुथ्रा बोल रहे थे। भारतीय नौसेना के लिए तीसरे विमान वाहक युद्धपोत की मांग दर्ज़ करने के विषय में गंभीर चर्चा हो रही है। भारतीय नौसेना में कुछ साल बाद सामिल होनेवाली तीसरी युद्धपोत ‘आईएनएस विक्रांत’ की तरह ४५ हज़ार टन भार की होनी चाहिये या ६५ हज़ार टन के विशाल विमान वाहक युद्धपोत का निर्माण करें, इस पर विचार हो रहा है। नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.हरि कुमार ने शनिवार को इसकी जानकारी साझा की थी। आईएनएस विक्रांत का निर्माण करनेवाले विशाखापट्टनम्‌‍ शिपयार्ड ने विक्रांत जैसे ४५ हज़ार टन भार के विमान वाहक युद्धपोत बनाने का ठेका मिला तो चार साल में यह काम पूरा करने का प्रस्ताव दिया था।

इस पर चर्चा के दौरान पूर्व नौसेना अधिकारी गिरीश लुथ्रा ने विमान वाहक युद्धपोत की ज़रूरत गिनेचुने शब्दों में कही। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपने हित सुरक्षित रखने के लिए भारत का सिर्फ राजनीतिक स्तर पर कोशिश करना पर्याप्त नहीं है, इसे समुद्री क्षेत्र के सामर्थ्य का साथ देना ही चाहिये, यह दावा लुथ्रा ने किया। विश्व के ‘जीडीपी’ में ६० प्रतिशत हिस्सा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों का है। विश्व के विकास में ६६ प्रतिशत आर्थिक विकास और ७० प्रतिशत वैश्विक व्यापार की यातायात इंडो-पैसिफिक क्षेत्र से होती है। इसकी वजह से इस क्षेत्र को बड़ी अहमियत प्राप्त हुई है। इसी कारण अहम देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए अपनी-अपनी नीति बना रहे हैं, इस बात पर लुथ्रा ने ध्यान आकर्षित किया।

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