चीन के विरोध में लिथुआनिया को अधिक मज़बूत समर्थन चाहिये – माध्यम एवं विश्‍लेषकों का दावा

मज़बूत समर्थनव्हिल्निअस/बीजिंग – पिछले वर्ष नवंबर में लिथुआनिया में ताइवान ने अपना राजनीतिक दफ्तर शुरू किया था। इस घटना से बेचैन हुए चीन ने लिथुआनिया की घेराबंदी करने की बड़ी कोशिश शुरू की है। चीन की इन गतिविधियों की पृष्ठभूमि पर पश्‍चिमी देशों को लिथुआनिया को मज़बूत समर्थन एवं सहयोग देना पड़ेगा, यह दावा विश्‍लेषक एवं माध्यम कर रहे हैं। कुछ दिन पहले अमरीका और यूरोपिय देशों के विदेशमंत्रियों की चर्चा के दौरान भी यह बातचीत होने की जानकारी सामने आयी है।

जुलाई में ताइवान और लिथुआनिया ने राजनीतिक दफ्तर शुरू करने का अधिकृत ऐलान किया था। नवंबर में ‘द ताइवानीज्‌ रिप्रेज़ेंटेटिव ऑफिस’ नामक शुरू किए गए इस ‘डिफैक्टो एम्बसी’ की पृष्ठभूमि पर चीन ने आक्रामक गतिविधियाँ शुरू की हैं। चीन ने लिथुआनिया से अपने राजदूत को वापस बुला लिया है और लिथुआनिया के राजदूत को भी देश से बाहर निकाला है। लिथुआनिया के दूतावास के राजनीतिक अफसरों को उनके पहचानपत्र लौटाने को कहा गया है और उनकी सुरक्षा हटाने के संकेत दिए हैं। लिथुआनिया से आयात हो रहे उत्पादनों पर अघोषित प्रतिबंध लगाए गए हैं। चीन से लिथुआनिया जानेवाली ‘कार्गो ट्रेन सर्विस’ बंद की गई है।

मज़बूत समर्थनइसके बाद अब लिथुआनिया में कार्यरत यूरोपिय कंपनियों पर भी दबाव ड़ाला जा रहा है और उन्हें चीन से व्यापार खोना होगा, इस तरह के इशारे भी दिए गए हैं। ऐसी पृष्ठभूमि पर अमरीका और यूरोपिय महासंघ ने लिथुआनिया को अधिक सहायता करना और चीन के खिलाफ आक्रामक भूमिका अपनाना आवश्‍यक है, ऐसा विश्‍लेषकों का कहना है। ‘सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक ऐण्ड इंटरनैशनल स्टडिज्‌’ के सलाहार डोव ज़ैखम ने सिर्फ जुबानी समर्थन पर रुके बिना पुख्ता कृति की आवश्‍यकता की बात कही। अमरीका में स्थित ताइवान के दफ्तर का नाम बदलना इसका एक विकल्प हो सकता है, यह सुझाव भी ज़ैखेम ने दिया है।

लिथुआनिया के मुद्दे पर अमरीका और यूरोपिय देशों ने एकजुट होकर चीन की आक्रामक गतिविधियों के खिलाफ निर्णय करना जरुरी है, ऐसी सलाह ‘हाँगकाँग पोस्ट’ ने अपने लेख में दी है।

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