सरकार बचाने के लिए नेपाल के प्रधानमंत्री का संघर्ष

काठमांडू – नेपाल की शासक पार्टी में बनी दरार की वज़ह से, चीनपरस्त प्रधानमंत्री के.पी.ओली की सरकार गिरने की कग़ार पर है। नेपाल में सियासी घटनाएँ तेज़ हुई हैं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने, अपनी पार्टी की स्थायी समिती की एक बैठक बुलाई है। इस बैठक में प्रधानमंत्री के.पी.ओली के इस्तीफ़े के लिए दबाव बढ़ाया जा सकता है। उनके भविष्य का निर्णय भी हो सकता है, ऐसीं खबरें प्राप्त हो रही हैं। शुक्रवार के दिन प्रचंड ने नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से भेंट की। साथ ही, प्रधानमंत्री ओली अपनी सरकार को बचाने के लिए पार्टी में दरार बनाने की और विपक्ष के साथ सरकार स्थापित करने की तैयारी में होने की खबरें भी प्राप्त हो रही हैं।

Nepal PMनेपाल की शासक पार्टी का सबसे अधिक प्रभावी मंडल होनेवाली ४५ सदस्यों की स्थायी समिती में, मंगलवार के दिन के.पी.ओली एकाकी पड़ने की खबरें प्राप्त हुई थीं। पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड, माधव कुमार नेपाल और झालानाथ खानल इन तीनों ने, ओली पर सत्ता का गलत इस्तेमाल करने के आरोप रखे थे। प्रधानमंत्री ओली ये लगातार विवादास्पद बयान कर रहे हैं और पार्टी से बातचीत किए बिना ही सरकार को चला रहे हैं। साथ ही, ओली सरकार ने नागरिकों की निराशा की है, यह आरोप भी इन तीनों ने रखा था। साथ ही, अपनी सरकार का तख़्ता पलटने के लिए भारत कोशिश कर रहा है, यह ओली ने किया बयान भी राजनीतिक दृष्टि से गलत होने की बात इन नेताओं ने कही थी।

लेकिन, इसके बाद शुरू हुए संसद के अधिवेशन में ही उन्हें इस्तीफ़ा देने के लिए मज़बूर किया जा सकता है, यह समझ में आ जाते ही, प्रधानमंत्री ओली ने दूसरे दिन ही राष्ट्रपति भंडारी से भेंट करके यह अधिवेशन स्थगित किया था। अपनी सरकार को बचाने के लिए ओली ने राष्ट्रपति से सिफ़ारिश करके यह अधिवेशन स्थगित किया, ऐसें आरोप अब हो रहे हैं। इस पृष्ठभूमि पर, कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रचंड़ ने पार्टी की स्थायी समिती की बैठक बुलाने के कारण, ओली का भविष्य इस बैठक पर निर्भर होगा, यह बात कही जा रही है। प्रचंड ने इससे पहले राष्ट्रपति भंडारी से भेंट की।

ओली और प्रचंड के बीच सत्ता का बँटवारा करने के मुद्दे पर विवाद होने की बात कही जा रही है। प्रधानमंत्री ओली और प्रचंड के बीच बने विवाद पर, राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने पिछले वर्ष ही एक हल निकाला था। उसके अनुसार ओली पाँच वर्ष के लिए प्रधानमंत्री रहेंगे और प्रचंड के हाथ में पार्टी का पूरा नियंत्रण रहेगा। लेकिन, ओली पार्टी का अध्यक्षपद छोड़ने के लिए भी तैयार ना होने के कारण, दोनों नेताओं का विवाद चरमसीमा तक बढ़ने की बात कही जा रही है। पिछले हफ़्ते में ही प्रचंड ने पार्टी की बैठक में सबके सामने यह बयान किया था कि, ‘हमने आधे समय के लिए प्रधानमंत्री पद का स्वीकार ना करके गलती की और अब ओली इस्तिफ़ा दे दें, नहीं तो हम पार्टी को तोड़ेंगे।’

प्रधानमंत्री ओली ने एक के बाद एक भारतविरोधी निर्णय किए थे। इनमें, भारतीय क्षेत्र को नेपाल का अंग दिखानेवाला नेपाल का नया नक्शा जारी करना, सिटीझनशिप बिल, इन जैसें निर्णयों का समावेश है। लेकिन, चीन ने कब्ज़ा की नेपाल की भूमि से ध्यान हटाने के लिए ही भारत का विद्वेष करनेवाले प्रधानमंत्री ओली ने ये सभी निर्णय किए हैं, ऐसीं खबरें सामने आने से उनके सामने चुनौतियाँ बढ़ीं हैं। विपक्ष के नेता आक्रामक हुए हैं और अब इस अवसर का लाभ उठाकर उन्हीं की पार्टी के विरोधक ओली के इस्तीफ़े की माँग कर रहे हैं।

इसी बीच, सिटीझनशिप बील के मुद्दे पर नेपाल के तरई क्षेत्र के मधेशी समाज ने प्रदर्शन करना शुरू किया है। वहाँ के अन्य स्थानीय दल भी सरकार से, यह विधेयक पीछे लेने की माँग कर रहे हैं। नेपाल की संसद में हिंदी पर पाबंदी लगाने के प्रस्ताव पर भी, क्या ये आदेश चीन से आये हैं, यह सवाल तरई क्षेत्र के राजनीतिक संगठन ओली से कर रहे हैं।

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