पाकिस्तान भारत के साथ कायमस्वरूपी शांति चाहता है – पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का प्रस्ताव

इस्लामाबाद – पाकिस्तान और भारत को एक और युद्ध बर्दाश्त नहीं होगा। इसलिए कश्मीर का मसला चर्चा के जरिए सुलझाना बहुत ही महत्वपूर्ण है, ऐसा दावा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने किया है। हावर्ड यूनिवर्सिटी के छात्रों को संबोधित करते समय तथा ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान के लिए नियुक्त किए नए राजदूत के साथ चर्चा करते समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत को यह शांति का प्रस्ताव दिया। उनके इस प्रस्ताव से अपने देश की अगतिकता दुनिया के सामने आ रही है, ऐसी आलोचना पाकिस्तान के विश्लेषकों ने की है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्रीसितंबर महीने में ‘शंघाय कोऑपरेशन ऑर्गनायझेशन-एससीओ’ की बैठक उज्बेकिस्तान के समरकंद में हो रही है। इसी बहाने भारत के साथ राजनीतिक स्तर पर चर्चा शुरू करने की एक और कोशिश पाकिस्तान द्वारा की जा रही है। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बयान ये उसी का हिस्सा साबित होते हैं। युद्ध नहीं चाहिए इसलिए कश्मीर का मसला सुलझाने के लिए चर्चा करें, ऐसी सलाह इससे पहले भी पाकिस्तान ने कई बार भारत को दी थी। लेकिन हाल की स्थिति में पाकिस्तान हालांकि युद्ध नहीं चाहता, फिर भी इस देश को भारत के साथ शांति अपेक्षित नहीं है, यह कई बार स्पष्ट हो चुका है।

ठेंठ युद्ध का ऐलान ना करते हुए, भारत का हर संभव नुकसान करने की कोशिश पाकिस्तान द्वारा अभी भी जारी है। फिलहाल मुंबई समेत देश भर में पाकिस्तान पुरस्कृत आतंकी, घातपात मचाने की कोशिश कर रहे होकर, वैसी धमकियां भी खुलेआम दी जा रही हैं।

जम्मू और कश्मीर में अभी भी पाकिस्तान का कुख्यात गुप्तचर संगठन आईएसआई घातपाती हरकतें करके बेगुनाह नागरिकों की जानें ले रहा है। इस पृष्ठभूमि पर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने दिए हुए इस प्रस्ताव को भारत गंभीरता पूर्वक लेने की संभावना नहीं है। फिर भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने दिए इस प्रस्ताव के पीछे इस देश को प्रतीत हो रही चिंता होगी, ऐसी गहरी संभावना जताई जाती है।

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल ने रसिया का दौरा करके रशिया के सुरक्षा सलाहकार निकोलाय पात्रुशेव्ह के साथ चर्चा की थी। इसमें युक्रेन का युद्ध और अन्य मुद्दों के साथ अफगानिस्तान का भी समावेश था। तालिबान की हुकूमत के रहते भी, भारत का अफगानिस्तान पर बढ़ता हुआ प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। पाकिस्तान से दूर जाकर तालिबान ने भारत के साथ उत्तम संबंध स्थापित करने की तैयारी दर्शाई है। अफगानिस्तान में फिर एक बार भारत का दूतावास शुरू करके, यहां पर बंद पड़े भारत के विकास प्रकल्प भी नए से शुरू करने की मांग तालिबान कर रहा है। भारत की अफगानिस्तान में चल रही इस मुहिम को रशिया का भी साथ मिल रहा होकर, आने वाले दौर में इससे पाकिस्तान के सामने की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

इसका एहसास हो जाने से पाकिस्तान हवालदिल बन चुका है। तालिबान की हुकूमत आने के बाद अफगानिस्तान का इस्तेमाल भारत के विरोध में करके कश्मीर में भीषण खून खराबा करने की भयंकर साज़िश पाकिस्तान में रची थी। यह साज़िश अब पाकिस्तान पर ही बूमरैंग हुई है। ऐसी परिस्थिति में भारत के साथ शांति स्थापित करना यह पाकिस्तान की ज़रूरत बन चुकी है। साथ ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दलदल में फंस गई है। भारत के साथ सहयोग स्थापित किए बिना अपने देश में आर्थिक स्थिरता स्थापित नहीं होगी, इसका सुस्पष्ट एहसास भी पाकिस्तान को हो रहा है। भारत का विकास, आर्थिक प्रगति और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता प्रभाव, यह सब उम्मीद भरी निगाहों से देखने वाली पाकिस्तानी जनता यह सवाल पूछ रही है कि हमारा देश इतना पिछड़ा हुआ क्यों रहा। कुछ दिन पहले विरोधी पक्ष नेता इम्रान खान ने भी यही सवाल करके भारत की विदेश नीति की प्रशंसा की थी।

इस पृष्ठभूमि पर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत के साथ चर्चा करने के लिए दर्शाई उत्सुकता यह स्वाभाविक बात साबित होती है। लेकिन कुछ ही दिन पहले, भारत पाकिस्तान के बीच की अघोषित राजनीतिक चर्चाएं नाकाम होने की खबरें आई थी। पाकिस्तान के ही अखबार ने ऐसी खबर प्रकाशित की थी। कश्मीर के मसले पर पीछे हटने के लिए दोनों देश तैयार नहीं हैं, इस कारण यह चर्चा असफल साबित हुई, ऐसा इस अखबार ने कहा था। ऐसी स्थिति में, दोनों देशों में चर्चा की एक और कोशिश सफल होने की फिलहाल तो कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही है।

भारत के साथ चर्चा चाहिए, तो पहले पाकिस्तान आतंकवाद का मार्ग छोड़ दें, ऐसे भारत की प्रमुख मांग है। साथ ही, कश्मीर का मसला पाकिस्तान के पक्ष में हल हो यह पाकिस्तान की जिद मानकर मान्य करने के लिए भारत तैयार नहीं है। लगातार युद्ध की अथवा परमाणु युद्ध की धमकियां देकर भी भारत कश्मीर के मसले पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं होता, उल्टे भारत के नेता अब पाकिस्तान व्याप्त कश्मीर फिर से लेने की भाषा बोलने लगे हैं। पाकिस्तान व्याप्त कश्मीर की जनता और यहां के कुछ नेता खुलेआम यह आलोचना करने लगे हैं कि पाकिस्तान के कारण हमारा भूभाग पिछड़ा रहा। इसके लिए भी शायद भारत के साथ चर्चा करना आवश्यक है, ऐसा पाकिस्तान को लग रहा होगा।

लेकिन शांति अथवा युद्ध इसका फैसला पाकिस्तान की इच्छा के अनुसार भारत नहीं होने देगा। क्या करना है और कैसे करना है इसका फैसला इसके आगे भारत की करेगा, ऐसा सूचक बयान कुछ महीने पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल ने किया था। यही भारत की पाकिस्तान के संदर्भ में भूमिका होने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं।

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