परमहंस-१२१

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख

रामकृष्णजी का विवाह हालाँकि हो चुका था, लेकिन वह नाममात्र था। अपनी पत्नी के साथ ही सभी स्त्रियों को वे ‘देवीमाता का अंश’ ही समझते थे और उसीके अनुसार उनका स्त्रियों से साथ का आचरण होता था। अतः उनकी संगत में स्त्रियों को अंशमात्र? भी डर या संकोच नहीं लगता था। उनके संपर्क में आयी हुईं स्त्रियों के मनोपटल पर रामकृष्णजी पिता, भाई, पुत्र, इतना ही नहीं, बल्कि अपने जीवन के लिए सदैव आधारभूत होनेवाले दैवी सखा इन्हीं नातों से अंकित हो जाते थे। इस कारण, जिस प्रकार रामकृष्णजी के चरणों में समर्पित हो चुके उनके विख्यात पुरुषभक्त थे, उसी प्रकार उनके भक्तों में स्त्रियों की संख्या भी कुछ कम न थी।

ये स्त्री-भक्त रामकृष्णजी को अपने मन की निजी बातें बिना कोई परदा रखें विश्‍वासपूर्वक बताती थीं, उनके जीवन की विभिन्न समस्याओं पर रामकृष्णजी उन्हें अपाय भी बताते थे। मुख्य बात, गृहस्थी को प्रेमयुक्त कर्तव्यभावना से करने का मशवरा रामकृष्णजी उन्हें देते थे।

रामकृष्ण परमहंस, इतिहास, अतुलनिय भारत, आध्यात्मिक, भारत, रामकृष्ण‘रामकृष्णजी का पुरुष होना हमारे नातेसंबंधों के आड़े कभी भी नहीं आया। हमारी किसी जीवश्‍चकंठश्‍च सखी को हम जिस तरह अपने मन की सारीं बातें बताती हों, उसी तरह हम रामकृष्णजी को भी हममें से ही एक समझकर, हमारे मन की सारीं निजी बातें उन्हें बतातीं थीं और ये बातें वे किसी के साथ भी साझा नहीं करेंगे ऐसा विश्‍वास हमें था ही’ ऐसा मत रामकृष्णजी को पूज्यस्थान में माननेवालीं उनकी कई स्त्रीभक्तों ने ज़ाहिर किया था।

रामकृष्णजी के दिव्यत्व का साक्षात्कार हुईं स्त्रीभक्त ङ्गिर कहाँ कहाँ से – बिलकुल दूरदराज़ के गाँवों से भी, कभी कभी तो कई मीलों का पैदल प्रवास कर उनके दर्शन के लिए आती थीं। समाज क्या कहेगा, रिश्तेदार क्या कहेंगे इसकी परवाह करना उन्होंने छोड़ दिया था। घर में कोई भी अच्छा व्यंजन यदि बनाया, तो रामकृष्णजी के लिए पहले उनका हिस्सा बाजू में किया जाता था और वह खुद के या अन्य किसी के हाथों रामकृष्णजी तक पहुँचाया भी जाता था। रामकृष्णजी की बातों में कभी किसी वस्तु का उल्लेख आता था, कि वह वस्तु ये स्त्रीभक्त बज़ार में से ढूँढ़ लाकर उनतक पहुँचाती थीं।

रामकृष्णजी के शुरुआती शिष्यगणों में से एक होनेवाले मनमोहन मित्राजी की माँ, यह रामकृष्णजी के ऐसे अग्रणी स्त्रीभक्तों में से एक थी। अपने पति के साथ पूरी तरह एकनिष्ठ रहकर गृहस्थी करनेवाली इस स्त्री का – ‘मेरी गृहस्थी यानी ईश्‍वर ने मुझे दिया हुआ एक व्रत ही है’ इस बात पर गाढ़ा विश्‍वास था और पतिनिधन के पश्‍चात् उसने सारे भौतिक सुखों की? ओर पीठ फेर दी थी। रामकृष्णजी के दिव्यत्व की प्रचिती आ जाने पर उसने उनके मार्गदर्शन में अपनी आध्यात्मिक प्रगति साध ली थी। रामकृष्णजी का शब्द ही उसके लिए धर्म बन चुका था।

रामकृष्णजी का बहुत ही क़रिबी शिष्य राखाल यह उसका दामाद था और दिनबदिन रामकृष्णजी की सेवा में रममाण होते हुए वह अधिक से अधिक रामकृष्णजी के क़रीब जा रहा था। उसकी इस सास ने धीरे धीरे अध्यात्म में इतनी प्रगति की कि ‘कल को यदि राखाल मानो सर्वसंगपरित्याग कर रामकृष्णजी की सेवा में रममाण हुआ, तो भी मुझे उसपर गर्व ही महसूस होगा’ ऐसा मत उसने व्यक्त किया था। रामकृष्णजी भी उसकी ओर आदरपूर्वक ही देखते थे और गृहस्थाश्रमी स्त्री का आचरण कैसे होने चाहिए, यह बताने के लिए उसकी मिसाल वे लोगों के सामने रखते? थे।

ऐसी कई स्त्रीभक्त रामकृष्णजी के परिवार में थीं, जिन्होंने स्वयं की और अपने साथ ही अपने परिवार की भी आध्यात्मिक प्रगति साध ली।

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