परमहंस- ६

जिसका जन्म हो जाते ही जिसके बारे में ईश्वरीय लीलाएँ देखने को मिली थीं, वह ‘वह’ बालक – गदाधर – प्रतिदिन अपने मातापिता का आनंद दुगुना कर रहा था। केवल मातापिता को ही नहीं, बल्कि उसके दीदार करनेवाले हर एक को ही, आनंद का ही अनुभव हो जाता था, जैसे नन्हें कन्हैया को देखनेवाले गोपगोपिकाओं को होता होगा! कई लोग तो कई बार और उनमें से कुछ लोग तो लगभग हररोज़ उस बालक को देखने आया करते थे।

ईश्वरीय लीलाएँ

हालाँकि ईश्वर ने, खुदिरामजी को हुए दृष्टांत में उन्हें आश्‍वस्त किया था, मग़र फिर भी बहुत ही गरीब हालात रहनेवाले खुदिरामजी-चंद्रमणीदेवी को – बालक के भौतिक मातापिता के तौर पर बालक के पालनपोषण की चिन्ता खाये जा ही रही थी। साथ ही, उस बालक को देखने हररोज़ लगनेवाला, आसपास के गाँवों के लोगों का इतना बड़ा ताँता, उसकी कम से कम ही सही, लेकिन मेहमाननवाज़ी का भी प्रश्‍न था ही।

लेकिन धीरे धीरे एक बात उनकी समझ में आयी थी कि उस बालक के लिए उन्हें समय समय पर जिस किसी भी चीज़ की ज़रूरत पड़ जाती थी, वह चीज़ अपने आप ही चलकर उनतक पहुँच जाती थी। उदाहरण के तौर पर, वह बालक जरासा बड़ा होने लगते ही, उसके दूध का प्रश्‍न उनके सामने खड़ा हुआ। लेकिन जब खुदिरामजी के एक भाँजे को इस बात का पता चला कि खुदिरामजी के घर इस दिव्य पुत्ररत्न का जन्म हुआ है, तब उसने सीधे उस बच्चे के दूध के लिए ठेंठ एक गाय ही खुदिरामजी के घर भेज दी थी….

….और इस प्रकार बच्चे के दूध का उन्हें सतानेवाला प्रश्‍न अपने आप ही हल हो गया था।

उसके अन्नप्राशन (दूध के अलावा अन्य अन्न बच्चे को चखाना) कराने के दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ था। वह तो पूरे गाँव का ही लाड़ला बालक था। फिर तो ज़ाहिर था कि अन्नप्राशन समारोह के दिन तो पूरा गाँव ही आनेवाला था। इतने सारे लोगों की आवभगत करने की कल्पना से ही खुदिरामजी-चंद्रमणीदेवी के सीने की धडकन बढ़ गयी थी। इसलिए उन्होंने यह समारोह एकदम कम खर्चे में….घर में ही सादगी से करने का तय किया था।

लेकिन वे ईश्वर थोड़े ही अपने श्रद्धावान भक्त को इस तरह दुविधा में पड़ने देंगे?

खुदिरामजी के नवजात शिशु का अन्नप्राशन समारोह एकदम सादगी से….घर ही में किया जानेवाला है, यह जानने के बाद सारा गाँव ही ज़रासा नाराज़ हो गया था। यह ख़बर गाँव के एक अमीर ज़मीनदार लाहाबाबू तक पहुँची और वह फ़ौरन खुदिरामजी के घर आया और उसने खुदिरामजी की एक न सुनते हुए, उन्हें प्रेमभरा आग्रह करके, यह समारोह एकदम ठाटबाट में होगा, ऐसा घोषित किया और उसके अनुसार बड़ा शामियाना लगाकर, सारे गाँव को और आसपास के गाँव को भी आमंत्रित करके बड़ी बड़ी भोजनपंक्तियाँ लगायीं और आनेवाले सबको पेट भरकर खाना देकर तृप्त किया।

आये हुए लोग आकंठ भोजन कर तृप्त होकर, बालक को शुभकामनाएँ देते हुए, बालक की ईश्वरीय सुन्दरता को अपनी आँखों में समाते हुए अपने अपने घर लौट गये।

उस दिन बालक का ‘गदाधर’ यह नाम घोषित किया गया, जिसका वहाँ की परिपाटि के अनुसार दुलारा अपभ्रंश बाद में ‘गदाई’ यह हुआ।

अब वह सारे गाँव का दुलारा बालक ‘गदाई’ यह नामाभिधान धारण कर अपनी बाललीलाओं के द्वारा लोगों को आनंदित करने लगा।

गाँव के हर एक घर में ही उसका आनाजाना लगा रहता था। किसी भी घर में गदाई प्रेमल हक़ के साथ जा सकता था। दरअसल गाँव के लोग, वह कब अपने घर आ रहा है, उसका बेसब्री से इन्तज़ार ही करते थे। किसी दिन यदि वह किसी कारणवश किसी घर में नहीं गया, तो उस घर के लोग, गदाई की तबियत तो ठीक है ना, इस आशंका से चिंताग्रस्त हो जाते थे।

वैसे ही, गाँव के किसी भी घर में कुछ विशेष खाने का व्यंजन बना हो, तो उसमें उस घर के सदस्यों के साथ ही गदाई का भी हिस्सा रखा हुआ रहता ही था।

इस तरह से अपनी बाललीलाओं से सबको आनंदित करते हुए गदाई धीरे धीरे बड़ा होने लगा। अब धीरे धीरे उसे स्कूल भेजने के बारे में घर में विचार किया जाने लगा।

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