सब-सहारा अफ्रीकी देश आतंकवाद का नया केंद्र बन रहे हैं – संयुक्त राष्ट्रसंघ की चेतावनी

नैरोबी – अनदेखे और विकास से दूर सब-सहारा अफ्रीकी देश आतंकवाद का नया केंद्र बन रहे हैं। बेरोज़गारी और आर्थिक किल्लत के कारण इन देशों के युवा चरमपंथी विचारधारा वाले और आतंकवादी संगठनों की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसी गंभीर चेतावनी संयुक्त राष्ट्र संघ ने दी। पिछले कुछ सालों से विश्वभर में आतंकवादी हमलों की मात्रा कम हो रही है। लेकिन, इसी दौरान सब-सहारा अफ्रीकी देशों में यह हमले बढ़ रहे हैं और यह अधिक चिंता का मुद्दा है, ऐसा इशारा राष्ट्र संघ ने दिया है।

सब-सहारा अफ्रीकी देश यानी सहार रेगिस्तान के दक्षिणी ओर के अफ्रीकी देश। इनमें पूर्व से पश्चिम अफ्रीका से मध्य और दक्षिणी ओर के सभी अफ्रीकी देशों का समावेश है। साल २०१७ में संयुक्त राष्ट्रसंघ की अंतरराष्ट्रीय विकास संस्था (यूएनडीपी) ने सब-सहारा अफ्रीकी देशों की रपट बनाई थी। इस दौरान धार्मिक और सामाजिक असंतोष की वजह से आतंकवादी संगठनों में शामिल होनेवालों की संख्या बढी थी, ऐसा दावा ‘यूएनडीपी’ ने किया था। लेकिन, साल २०१७ के बाद पिछले पांच सालों में इन सब-सहारा अफ्रीकी देशों की चरमपंथ और विभिन्न आतंकवादी संगठनों का प्रभाव और आतंक अधिक बढ़ा है, ऐसा यूएनडीपी ने अपनी नई रपट में कहा है।

बुर्किना फासो, कैमेरून, छाड़, माली, नायजेर, नाइजेरिया, सोमालिया और सुड़ान इन आठ सब-सहारा देशों के लगभग २,२०० लोगों का साक्षात्कार करके यूएनडीपी ने यह रपट बनाई है। इनमें से १,००० से अधिक लोगों ने पहले ही आतंकी संगठनों के साथ काम किया था। उन्होंने साझा की हुई जानकारी के अनुसार सब-सहारा देशों के बोको हराम, अल-शबाब एवं अल-कायदा और आयएस जैसे आतंकवादी संगठनों से जुड़े गुटों में हो रही भरती ९२ प्रतिशत वृद्धि हुई है। अपने देश की बेरोज़गारी, आर्थिक संकट में झुलसने से यह युवा इन आतंकवादी संगठनों में भरती होने की जानकारी इन साक्षात्कार से सामने आयी है।

ऐसे बेरोजगार युवा आतंकवादी बनकर पैसों के लिए काफी हिंसा कर रहे हैं। इसकी वजह से पिछले पांच सालों में सब-सहारा देशों में ४,१५५ आतंकवादी हमलों में १८,४१७ लोग मारे गए हैं, इन आँकड़ों पर इस रपट ने ध्यान आकर्षित किया है। इस आतंकवाद को रोकने के लिए सैन्य कार्रवाई की जाती रही है, फिर भी इसे कामयाबी हासिल नहीं हो सकी है, ऐसी आलोचना भी इसमें की गई है। इसे रोकना हो तो सब-सहारा अफ्रीकी देशों के युवाओं को रोजगार देना और संबंधित देशों की अर्थव्यवस्था को सुधारना अहम साबित होगा, ऐसा इशारा इस रपट में कहा गया है।

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